रिश्तों में कभी जंग नहीं लगती लेकिन जंग न लग जाये के डर से बारिश में भीगना ही नहीं वाली सोच से रिश्ते धूल हो जाते है दूर तक फैले रेगिस्तान की तरह जहाँ फिर कुछ नहीं निपजता फिर कितनी भी बारिश क्यूँ न हो और रिश्तों में पसरने लगती है ख़ामोशी की नागफ़नी जो बींध देती है रिश्तों के होने के मानी


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