अपने बालों से ज्यादा मैं उसके ख़त संवारा करती थी, वो बैठा हो किसी उधेड़बुन में, बस उसे एक- टक निहारा करती थी। वो इक नज़ारा सबसे प्यारा होता था, कि गर मैं समंदर बनूं तो वो किनारा होता था।
अपने बालों से ज्यादा मैं उसके ख़त संवारा करती थी, वो बैठा हो किसी उधेड़बुन में, बस उसे एक- टक निहारा करती थी। वो इक नज़ारा सबसे प्यारा होता था, कि गर मैं समंदर बनूं तो वो किनारा होता था।
0 comments:
Post a Comment