0
यही मुझे सिखाया गया बस इतना ही मुझे आया है नहीं सोचा मैंने कभी खुद का बात जब भी मेरे आन पर आया है जब बुरी नज़र पड़ी मेरे ही सम्मान पर जान न्योछावर खुद की कर आया है लोगों के पीछे जब मेरे अपने सम्मान को जाते देखा तब खुद से अपना ही विश्वास उठ आया है अपनों के लिए मैंने सर झुकाना है सीखा झुका सर देख मेरा अपनों ने ही खिल्ली उड़ाया है गोली लगी फिर भी शान से अडिग रहा मैं हाँ मुझे सर धड़ से भी अलग करने आया है मेरी शान मेरे मातृभूमि की ख़ातिर मैं कुछ भी कर जाऊँ मेरे पवित्र "माँ" के लिए "अमर" अपनी जान भी देने आया है


0 comments:

Post a Comment