हाँ यारों आख़िरकार वो आई है इंतेज़ार था जिस घड़ी का आज वो घड़ी अब आई है न बहाना है आज देरी का यारों बड़ी फ़ुर्सत से वो आई है वक़्त ने क्या ख़ूब करवट लिया देखो वो शर्मोहया छोड़ आई है दुल्हन सी सजी है वो गले लगकर रोने वो आई है लहूलुहान पड़ा मैं यहाँ वो भी लाल जोड़े में खूब इतराई है डरते डरते सही पर मुस्कुरा कर वो आई है ज़माने से छुप छुपा कर आज मेरी मौत मिलने आई है हाँ यारों आख़िरकार वो आई है ये आख़री सलाम है अब मेरा चलता हूँ मेरी महबूब मुझे लेने आई है


0 comments:

Post a Comment