मुझे बहुत जलन हो रही थी रोहन के चमचमाते नये जूते देखकर! मैं आज घर जाते ही बाबा से कहूॅंगी कि मुझे भी नये जूते चाहिए तो चाहिए हीं...! अपनी इस ज़िद को मनवाने के नये नये तरीक़े सोचते-सोचते घर आ गयी। मैं मुॅंह फुलाकर घर में घुसी। "चल बेटा, यूनिफार्म चेंज कर लें, मैं खाना लगाती हूॅं" "माॅं, बाबा कहाॅं हैं, मुझे उनसे बात करनी है" "होंगे यहीं बैठक में, क्या बात है बता तो..." "बाबा...बाबा..." "हाॅं बेटा, आ गई स्कूल से", बाबा ने बिना मेरी ओर देखे ही कहा। मेरा ग़ुस्सा और बढ़ गया। ऐसा भी कौन सा काम जिसमें इतने मग्न हैं, मैं चुप देखने लगी। "अरे बोल न, चुप क्यूॅं हो गयी", अब उन्होंने मेरी तरफ देखा। "कुछ नहीं पिताजी..." "कुछ तो है, बड़े ग़ुस्से में थी, मैं पहचानता हूॅं तेरी आवाज़" "वो... मैं कह रही थी कि आज मुझे अपने जूते चमकाने हैं, पोलिश चाहिए" "नहीं बेटा, पोलिश तो नहीं, मैं बाज़ार जाऊॅंगा तो लेता आऊॅंगा.." "नहीं रहने दीजिए, अपने लिए नये जूते ले आना, क्या रोज़-रोज़ इन फटे जूतों को सिलते रहते हैं..." ~ Sonnu Lamba


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