सत्य को जानने के लिए सदैव बुद्ध नहीं बनना पड़ता न ही चट करने होते हैं उनके दिए उपदेश मैं स्त्रियों से कह रही हूँ तुम्हें नहीं ज़रूरत गृहत्याग की न ही आवश्यकता है कोई बुद्ध होने की क्योंकि तुम्हें बख़ूबी आती है भीतर की यात्रा तुम्हारा हृदय ही तुम्हारा बोधगया है और तुम्हारी आँखें निरंजना नदी तुम्हारा आत्मबल ही पीपल का वृक्ष है और तुम्हारा संघर्ष ही तुम्हारा बोधिसत्व! ~ दिव्याशा-'यायावर'


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