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कभी-कभी किसी से ख़ूब बात करने का मन करता है। आपको जो भी मिलता है आप उसे पकड़-पकड़कर बतियाने लगते हैं। एक दिन आप बोलते-बोलते थक जाते हैं और बोलना बन्द कर देते हैं। आपका किसी से बात करने का मन नहीं करता। यहाँ तक कि आप दूसरों को जवाब देना भी बंद कर देते हैं। आप उन्हें इग्नोर करने लगते हैं और लोग आपको अहंवादी समझने लगते हैं। यहीं से शुरुआत होती है उदासी की। आपको पता भी नहीं होता, आप भीतर ही भीतर उदास रहने लगते हैं।


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