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ग़ज़ल: कुछ भी तेरे बाद नहीं है, ये तक तुझको याद नहीं हैं इश्क़ मकाँ है गिरने वाला, जज़्बे की बुनियाद नहीं है, तेरा होना हक़ है मेरा, ये कोई फ़रियाद नहीं है, दिल जंगल तो बंजर है अब, गोशा इक आबाद नहीं है, एक जहाँ में कितनी खुशियाँ, लेकिन कोई शाद नहीं है, शेर कहा करता था मैं भी, पर अब कुछ भी याद नहीं है,


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