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कभी कभी मन मेरा भी करता हैं ऩाजायज शब्द से बंधे ज़ंजिरोंसे छुटने का आज़ाद जीने का मुझे भी इंतजार होता हैं माँ पापा से मिलने का उनके नाम के साथ अपनी पहचान बनाने का मुझे भी चाहत होती हैं एक हसते खेलते परिवार में रहने की पर ये जालीम दुनिया सच्चाई से रूबरु कराती हैं और अपने रस्मों के बेडों में बाँध कर रखती हैं फिर भी कभी कभी मन मेरा भी करता हैं लोगोंकी ये गंदी सोच मिटाने का इन बेडीयोंको तोड़ खुशियाँ ढुँडने का


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