पतझड़ भी हिस्सा है जिंदगी के मौसम का फर्क सिर्फ इतना है कुदरत में पत्ते सूखते हैं हकीकत में रिश्ते तेरी यादें जैसे मौसम-ए-पतझड़.. जब भी आती है बिखेर देती है मुझे..


0 comments:

Post a Comment