चौदह वर्ष बाद यदि किसी को उसके पिता वापस मिल जाये (किसी भी रूप में ) तो एक बेटी की प्रसन्नता का आकलन करना बेहद सहज होगा...2005 में स्वर्णिमा के पिता का देहांत हो गया.. उनकी मृत्यु का स्वर्णिमा पे बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा क्योंकि वो घर मे सबसे छोटी थी और अपने पिता के बेहद करीब भी...इन चौदह सालो में जब भी उसकी सहेलिया अपने पिता के बारे में बात करती तो वो बस मौन रहती...बातूनी स्वर्णिमा के पास एक यही ऐसा विषय था जिसपे वो अपनी प्रतिक्रिया नही दे पाती थी क्योंकि कुछ था ही नही उसके पास बोलने को...लेकिन आज उसे अपने पापा के रूप में कोई ऐसा मिला जिसने बिना शर्त उसे अपनी बेटी मान लिया...सामाजिक लहज़े में लोग उन्हें स्वर्णिमा के ससुर जी के नाम से जानते थे लेकिन स्वर्णिमा के लिए वो उसके पिता ही थे...रिश्ता कोई भी हो आप बस उसके प्रति ईमानदार रहना सीखिए क्या पता आपका भी कोई खोया हुआ रिश्ता दोबारा वापस मिल जाये...।।


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