0
मैं ! मैं प्रभात हूँ, मैं दीप्त हूँ, हाँ ! मैं दीप्त हूँ,अभी प्रारंभ का | मैं प्रगाढ़ हूँ धीरता का | मैं सरस हूँ संवेदनाओं का | और प्रखर हूँ उत्तेजनाओं का| यूँ बाह्य मुझमें झांकोगे उलझ जाओगे | मैं कुटिल हूँ और स्वार्थ भी मुझमें | मैं जटिल हूँ और अनाविल भी मुझमें| मैं उभयभाव हूँ, जो मुझे समझोगे तो उलझ जाओगे | मैं आशुतोष हूँ खुद में संतोष हूँ | मैं प्रभात हूँ और अभी उदय में हूँ | बस इतना सा है परिचय मेरा, शायद ! तुम समझ जाओगे | या फिर उलझ जाओगे |


0 comments:

Post a Comment