वफ़ाओं को हदों तक क्यूँ सताया तुमनें किसी के दिल से दिल को क्यूँ मिलाया तुमनें जलते चरागों को नज़र लगनी लाज़िमी थी , हवाओं को संग-संग क्यूँ चलाया तुमनें चांद है ज़ालिम न आएगा छत तक कभी , अंधेरो की चाहत में क्यूँ ख़ुद को गवायां तुमनें पूछने वालों से बोलो मोहब्बत से पाकीज़ा कुछ भी नही , पाकीज़ा इश्क़ में क्यूँ ख़ुद को गुनहगार बताया तुमनें..!


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