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जो जगत को ज्योति बांटे, तू धवल प्रकाश बन। जब कभी कोई पुकारे, तू द्वारिका का नाथ बन। जो कभी नही रुके, वो गंगा पुत्र भीष्म बन। यामिनी सुहावनी में, तू रुचिर चंद्र बन। तू जगत के पुष्कर में, अनुपम पुण्डरीक बन। बातो की कटार से, तू सत्रु लहू लुहान कर। क्रोध रुपि असुरो का, तू संघार कर। तू देश उद्धार हेतु, प्रयत्न बार बार कर।


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